बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले राजनीति का पारा चढ़ा हुआ है। जहां एक ओर पार्टियां जनता को लुभाने की कोशिश कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर मतदाता पहचान से जुड़ी अनियमितताओं ने चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस बार विवादों के घेरे में बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा हैं, जिन पर दो अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में दो EPIC (वोटर आईडी) कार्ड रखने का आरोप लगा है।
क्या है पूरा मामला?
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस ने दावा किया है कि उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा के नाम पर दो अलग-अलग EPIC कार्ड मौजूद हैं।
- पहला EPIC कार्ड लखीसराय (उनका पैतृक क्षेत्र) से जारी हुआ है, जिसका EPIC नंबर IAF39393370 है।
- दूसरा कार्ड पटना के बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र से है, जिसका EPIC नंबर AFS0853341 है।
इन दोनों कार्डों की जानकारी सोशल मीडिया पर सार्वजनिक की गई है। इससे भी बड़ी बात यह है कि दोनों क्षेत्रों में विजय सिन्हा ने SIR फॉर्म भर रखा है – यह फॉर्म मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने या संशोधित कराने के लिए होता है।
उम्र में भी गड़बड़ी का आरोप
राजद नेता तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर विजय सिन्हा पर सीधा हमला करते हुए कहा कि दोनों EPIC कार्ड पर उनकी अलग-अलग उम्र दर्ज है – एक में 57 वर्ष, जबकि दूसरे में 60 वर्ष। तेजस्वी ने इसे चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि या तो चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया ही फर्जी है, या फिर डिप्टी सीएम खुद फर्जीवाड़ा कर रहे हैं।
कांग्रेस ने भी उठाए गंभीर सवाल
कांग्रेस ने भी विजय सिन्हा पर सीधा हमला बोला है। पार्टी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा:
“सबसे बड़े फ्रॉड तो उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा निकले! साहब दो जगह के मतदाता हैं।”
कांग्रेस ने यह भी कहा कि विजय सिन्हा ने दोनों क्षेत्रों में SIR फॉर्म भरा, और दोनों जगह ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में उनका नाम आ चुका है। पार्टी ने सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा:
- क्या विजय सिन्हा दोनों जगह से वोट डालते रहे हैं?
- चुनाव आयोग ने उनका नाम दो स्थानों पर कैसे डाल दिया?
- दो जगह SIR फॉर्म भरना क्या नियमों का उल्लंघन नहीं है?
- क्या अब इस पर FIR होगी और इस्तीफा दिया जाएगा?
क्या कहता है कानून?
चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति का नाम एक समय में केवल एक ही विधानसभा क्षेत्र में दर्ज किया जा सकता है। दो जगह से नाम दर्ज करना अपराध की श्रेणी में आता है और यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 व 1951 के तहत दंडनीय अपराध है।
आगे क्या?
इस पूरे मामले ने बिहार की राजनीति में उबाल ला दिया है। तेजस्वी यादव ने यह भी कहा कि यह मुद्दा कोर्ट में उठाया जाएगा, और वे पूरे सबूतों के साथ चुनाव आयोग की प्रक्रिया की जांच की मांग करेंगे। उन्होंने चुनाव आयोग की ड्राफ्ट वोटर लिस्ट को भी संदिग्ध बताया और कहा कि इमेज बेस्ड पीडीएफ फॉर्मेट से पारदर्शिता में कमी आई है।
निष्कर्ष
बिहार चुनाव से पहले यह विवाद न सिर्फ डिप्टी सीएम विजय सिन्हा की साख को प्रभावित कर सकता है, बल्कि पूरे चुनावी सिस्टम की पारदर्शिता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। यदि आरोप सही साबित होते हैं, तो यह चुनाव आयोग की प्रणाली पर एक बड़ा सवाल होगा – कि कैसे राज्य के सबसे ऊंचे पदों पर बैठे नेता दोहरे पहचान पत्र के जरिए कानून की धज्जियां उड़ा सकते हैं।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या चुनाव आयोग स्वतः संज्ञान लेता है, और क्या विजय सिन्हा इस पर कोई सफाई देते हैं या राजनीतिक दबाव में मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा।
