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केंद्रीय गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता अमित शाह रविवार को केरल पहुंचे। शाह का यह दौरा कई दृष्टियों से अहम माना जा रहा है—विचारधारा, विपक्ष पर हमले और आने वाले चुनावों की रणनीति, सभी स्तरों पर उनके बयान और गतिविधियाँ चर्चा का विषय बनी हुई हैं।
RSS से जुड़ाव की स्वीकारोक्ति

अमित शाह ने अपने भाषण की शुरुआत एक बड़े और स्पष्ट संदेश के साथ की। उन्होंने कहा कि वे केवल भाजपा के नेता नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्वयंसेवक भी हैं।
यह बयान ऐसे समय आया है जब संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है। शाह ने संघ को भारत की सांस्कृतिक और वैचारिक पहचान का वाहक बताया। उन्होंने कहा कि संघ ने न केवल संगठन खड़ा किया है बल्कि देश के युवाओं में राष्ट्रभक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी का भाव भी जगाया है।
यह स्वीकारोक्ति राजनीतिक रूप से भी अहम है। केरल में भाजपा को अक्सर यह आलोचना झेलनी पड़ती है कि वह “उत्तर भारत की पार्टी” है और उसकी वैचारिक जड़ें राज्य की सामाजिक संरचना से मेल नहीं खातीं। शाह का संघ से जुड़ाव का खुला ऐलान भाजपा समर्थकों के बीच आत्मविश्वास बढ़ाने वाला कदम माना जा रहा है।
विपक्ष पर तीखा हमला
अमित शाह का भाषण केवल आत्मस्वीकृति तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने विपक्षी खेमे को भी कठघरे में खड़ा किया।
सबसे ज़्यादा चर्चा उनके उस बयान की हुई जिसमें उन्होंने विपक्ष द्वारा उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को नक्सल समर्थक बताया।
शाह ने आरोप लगाया कि विपक्ष जानबूझकर ऐसे चेहरों को आगे ला रहा है जिनका अतीत लोकतांत्रिक मूल्यों और राष्ट्रीय एकता पर सवाल खड़े करता है। उनका कहना था कि भारत की राजनीति में यह प्रवृत्ति खतरनाक है और जनता को ऐसे लोगों को नकारना चाहिए।
उनके इस बयान ने न केवल केरल बल्कि पूरे देश में राजनीतिक बहस छेड़ दी है। भाजपा समर्थक इस बयान को विपक्ष पर करारे प्रहार के रूप में देख रहे हैं, जबकि विपक्ष इसे शाह का ध्यान भटकाने वाला दांव बता रहा है।
चुनावी तैयारी और रणनीति
शाह का दौरा महज़ भाषण देने तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने भाजपा के केरल नेतृत्व के साथ विस्तृत बैठक की।
बैठक में 2026 विधानसभा चुनाव और आगामी स्थानीय निकाय चुनाव की रणनीति पर चर्चा की गई।
अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को साफ संदेश दिया कि केरल में पार्टी को संगठनात्मक स्तर पर मजबूत करना ही सबसे बड़ी प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि राज्य में पार्टी की स्थिति फिलहाल कमजोर जरूर है, लेकिन लगातार प्रयास और बूथ स्तर पर मेहनत से हालात बदले जा सकते हैं।
बैठक में यह भी चर्चा हुई कि किन क्षेत्रों में भाजपा को ज्यादा फोकस करना होगा, किन सामाजिक समूहों तक पहुंच बनानी है और किन स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाना है। शाह ने खुद इन बिंदुओं पर दिशा-निर्देश दिए।
केरल की राजनीति में भाजपा की स्थिति
केरल पारंपरिक रूप से वामपंथी और कांग्रेस समर्थक राजनीति का गढ़ रहा है। यहाँ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) और संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (UDF) के बीच ही सत्ता की अदला-बदली होती रही है।
भाजपा को अब तक इस राज्य में निर्णायक सफलता नहीं मिल पाई है। पार्टी का वोट शेयर कुछ सीटों पर प्रभावशाली जरूर हुआ है, लेकिन विधानसभा में जगह पक्की करने का सपना अधूरा ही है।
यही कारण है कि अमित शाह जैसे बड़े नेता का बार-बार राज्य का दौरा करना बेहद रणनीतिक माना जा रहा है। यह भाजपा का संकेत है कि वह अब केरल को हल्के में नहीं लेगी।
महुआ ख़बर
