पूर्व IPS कुलदीप शर्मा पर कांग्रेस नेता अब्दुल के साथ 1984 की मारपीट के आरोप में कोर्ट ने तीन माह की जेल और जुर्माना सुनाया, पुलिस अधिकारियों के दुरुपयोग पर अदालत का कठोर रुख
अहमदाबाद के कच्छ जिले की एक अदालत ने कांग्रेस नेता अब्दुल हाजी इब्राहिम के साथ मारपीट और उन्हें गलत तरीके से बंधक बनाने के मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी कुलदीप शर्मा के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया है। इस मामले में अदालत ने कुलदीप शर्मा सहित अन्य आरोपियों को दोषी ठहराया है और तीन महीने की सजा सुनाई है। यह पुराना मामला 1984 का है, जब कुलदीप शर्मा कच्छ के पुलिस अधीक्षक थे।
अदालत ने पाया कि कुलदीप शर्मा और अन्य आरोपियों ने कांग्रेस नेता अब्दुल हाजी इब्राहिम को उनके कार्यालय में जबरदस्ती बंधक बनाया और उन पर डंडों से हमला किया था। शिकायतकर्ता शंकर जोशी के अनुसार, यह घटना 6 मई 1984 को हुई थी जब एक प्रतिनिधिमंडल कच्छ के नालिया शहर से भुज एसपी कार्यालय पहुंचा था। प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस द्वारा निर्दोष लोगों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में उत्पीड़न का मुद्दा उठाया था। इसी दौरान जब पूर्व आईपीएस कुलदीप शर्मा को पता चला कि कांग्रेस नेता इब्राहिम प्रतिनिधिमंडल में हैं, तो उन्होंने उन्हें बगल के कमरे में ले जाकर मारपीट की। इस घटना में तत्कालीन पुलिस निरीक्षक वासवदा और अन्य आरोपी भी शामिल थे।
कुलदीप शर्मा ने न्यायालय में अपनी सजा को लेकर कई स्तरों पर अबादी की कोशिश की, लेकिन उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राहत देने से इनकार किया। सुप्रीम कोर्ट ने भुज की अदालत को निर्देश दिया कि तीन महीने के भीतर मामले की सुनवाई पूरी की जाए और सजा सुनाई जाए। इसके बाद अदालत ने शर्मा और वासवदा को तीन-तीन महीने की जेल की सजा सुनाने के साथ ही प्रत्येक पर 1000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।

यह मामला पुलिस अधिकारियों के दुरुपयोग और सत्ता के बेजा इस्तेमाल को दर्शाता है, जहां उच्च पदस्थ अधिकारी द्वारा एक लोकतांत्रिक नेता के साथ मारपीट की गई। अदालत के फैसले से यह स्पष्ट संदेश जाता है कि किसी भी स्तर पर कानून का उल्लंघन सहन नहीं किया जाएगा, चाहे वह कोई पूर्व पुलिस ऑफिसर ही क्यों न हो।
इस सजा से जुड़े कानूनी जटिलताओं और आरोपों का सफाया होने की उम्मीद जगी है, जो लंबे समय से लंबित था। कांग्रेस नेता अब्दुल के साथ मारपीट का यह मामला उन चुनिंदा मामलों में से है जहाँ पुलिस अधीक्षक के खिलाफ न्यायालय ने कठोर कदम उठाया है।
यह फैसला न्याय व्यवस्था की प्रभावशीलता और स्वतंत्रता का एक उदाहरण माना जा रहा है, जो जनता के विश्वास को मजबूत करेगा। कुलदीप शर्मा के खिलाफ जारी इस अरेस्ट वारंट से यह भी संकेत मिलता है कि कोई भी अधिकारी कानून से ऊपर नहीं है और न्याय के दायरे में आएगा।
इस संदर्भ में अदालत के विस्तृत आदेश और कानूनी दस्तावेज सामने आने के बाद तथा कुलदीप शर्मा की प्रतिक्रिया आने पर और अधिक सूचनाएं मिलेंगी।
