बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए के सीट बंटवारे को लेकर बड़ा सियासी संकट उत्पन्न हो गया था, लेकिन आखिरकार बीजेपी के हस्तक्षेप और नेतृत्व की सक्रिय भूमिका से यह विवाद सुलझा दिया गया। जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा, जिनकी पार्टियाँ हम (हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा) और आरएलएम (राष्ट्रीय लोक जनता दल) क्रमशः एनडीए का हिस्सा हैं, शुरुआती सीट बंटवारे पर बेहद नाराज हो गए थे। राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि यदि उनकी माँगें नहीं मानी गईं तो एनडीए की एकजुटता पर गंभीर संकट आ सकता है।
नाराजगी की वजह और प्राथमिकताएँ
हम के प्रमुख जीतन राम मांझी और आरएलएम के उपेंद्र कुशवाहा दोनों को एनडीए की ओर से पहले 6-6 सीटें अलॉट की गईं थीं। जबकि दोनों नेता और उनके समर्थक अधिक सीटों की उम्मीद कर रहे थे – मांझी करीब 15 और कुशवाहा लगभग 10–12 सीटें चाहते थे। जब वांछित संख्या नहीं मिली तो बातचीत के दौरान दोनों नेताओं ने भाजपा, खासकर शीर्ष नेतृत्व के सामने अपनी नाराजगी खुलकर ज़ाहिर की। राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार, मांझी और कुशवाहा दोनों के प्रभावी वोटबैंक हैं और बिहार चुनाव में पिछड़े वर्गों में इनका असर भी काफी है।

बीजेपी की समझदारी और समाधान
नाराजगी को देखते हुए बीजेपी नेतृत्व ने दोनों नेताओं को मनाने की रणनीति अपनाई। पार्टी के सीनियर नेताओं ने देर रात तक लगातार बैठकें कीं, फोन पर भी बातचीत जारी रही और भरोसा दिलाया गया कि उनकी हिस्सेदारी बढ़ाई जाएगी। अंततः दोनों को एक-एक अतिरिक्त सीट ऑफर की गई – यानी कुल सात-सात सीटें – जिससे उनकी नाराजगी दूर हो गई और वे एनडीए के साथ मजबूती से खड़े होने को राज़ी हो गए। यह समझौता गठबंधन के लिए बड़ी राहत साबित हुआ।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
एनडीए में आंतरिक टकराव की खबरों पर विपक्षी महागठबंधन (राजद, कांग्रेस आदि) ने तंज कसते हुए कहा कि एनडीए में पुराना फार्मूला अब काम नहीं कर रहा; छोटी पार्टियों की अनदेखी की जा रही है। विपक्ष का दावा है कि सीट बंटवारे की यह खींचतान NDA की जमीनी एकता पर सवाल खड़े करती है और आम वोटर में इससे भ्रम की स्थिति पैदा होती है।
अंतिम समझौते का असर
झगड़ा चाहे जितना बड़ा रहा हो, लेकिन एनडीए नेतृत्व विवाद का हल निकालने में कामयाब रहा। मांझी–कुशवाहा दोनों के लिए एक-एक सीट बढ़ाना और उन्हें सार्वजनिक मंच पर मित्रवत दिखाना यह संदेश देता है कि अभी भी भाजपा गठबंधन की संचालन क्षमता मजबूत है और छोटे दलों के हितों की अनदेखी नहीं होगी। फिलहाल राजनीति गर्माई जरूर थी, लेकिन अब सीट बंटवारे की तस्वीर साफ होने से चुनावी तैयारियों को गति मिली है और एनडीए का कुनबा बिखरने से बच गया।
