by Md atik
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर राजनीतिक माहौल काफी तेज़ हो चुका है। इस बीच, जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ दिया है। पीके ने स्वयं चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय लिया है, लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी जन सुराज को 243 विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारकर पूरी राजनीति में हलचल मचा दी है।
प्रशांत किशोर का कहना है कि उनकी पार्टी या तो बहुत बड़ी कामयाबी हासिल करेगी या पूरी तरह से पिछड़ जाएगी। उन्होंने राजनीतिक विश्लेषण में कहा है कि बिहार की पारंपरिक राजनीति में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार का प्रभाव है, लेकिन अब बदलाव की जरूरत है। प्रशांत किशोर का मानना है कि बिहार के लोग नए विकल्प की तलाश में हैं और जन सुराज इसी बदलाव की ताकत है। उन्होंने यह भी कहा कि जन सुराज को अगर जनता भरोसा देगी, तो पार्टी 150 से अधिक सीटें जीत सकती है, जबकि अगर इतना नहीं हुआ तो सीटें 10 से भी कम रह सकती हैं।
इस पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि चुनाव महागठबंधन और NDA के बीच सिमटकर रह गया है। उन्होंने कहा कि यह सब चुनाव में धोखा देने की रणनीतियां हैं। खासतौर पर महागठबंधन में आपसी मतभेद साफ दिख रहे हैं, वहीं NDA पूरी तरह संगठित है। उन्होंने कहा कि तीसरे घटक के तौर पर कोई बड़ा विकल्प अभी सामने नहीं आया है, जो चुनाव के बाद ही साफ होगा।

दिलीप जायसवाल ने दावा किया कि बिहार की जनता समझ चुकी है कि चुनाव का असली मुकाबला महागठबंधन और NDA के बीच है। उन्होंने महागठबंधन पर आरोप लगाया कि वे सीट बंटवारे को लेकर पारदर्शिता नहीं दिखा रहे और इस वजह से उनकी छवि खराब हो रही है। इसके विपरीत, एनडीए ने सीटों का बंटवारा पहले ही फाइनल कर लिया है और उम्मीदवारों की सूची भी जारी कर दी है।
प्रशांत किशोर ने अपने बयान में यह भी कहा कि वह स्वयं चुनाव में नहीं उतरेंगे, ताकि वे पूरी ताकत से पार्टी प्रचार और संगठन पहाड़ी काम कर सकें। उनका मानना है कि विकल्प दिखाकर बिहार की राजनीति को बदलना ही उनका मकसद है। पीके ने साफ किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिए जन सुराज सत्ता में आएगी तो वह 100 सबसे भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ मुकदमे चलाएगी।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस त्रिकोणीय मुकाबले में जन सुराज पार्टी की भूमिका निर्णायक हो सकती है, भले ही यह पार्टी कभी भी बड़ी संख्या में सीटें न जीत पाए। भाजपा और महागठबंधन दोनों के लिए जन सुराज की चुनौती गम्भीर है।
अंततः, बिहार के मतदाता इस चुनाव में तीन मुख्य विकल्पों के बीच निर्णय करेंगे: पारंपरिक महागठबंधन, सत्ताधारी एनडीए और जन सुराज के नए राजनीतिक विकल्प। चुनाव परिणाम इस तथ्य को स्पष्ट करेंगे कि बिहार की राजनीति में बदलाव की लहर कितनी गहरी है।
यह राजनीतिक जंग अभी और तीव्र होती नजर आ रही है क्योंकि दोनों पक्ष अपनी-अपनी रणनीतियों के साथ जनता के बीच जा रहे हैं। तय है कि बिहार का यह चुनाव फिर से देश की राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय साबित होगा।
