by Md atik
दीयों-मोमबत्तियों पर खर्च को अनावश्यक बताकर अखिलेश यादव ने क्रिसमस की चमक से सीखने की दी सलाह, यूपी में चुनावी सियासत में फिर गर्माई बहस
समाजवादी पार्टी के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस साल दिवाली से ठीक पहले एक विवादास्पद बयान दिया है, जिसमें उन्होंने दीयों और मोमबत्तियों पर खर्च को बर्बादी बताया और क्रिसमस के लाइटिंग त्योहार से सीख लेने की बात कही है। अखिलेश यादव का यह बयान उत्तर प्रदेश के लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सामने आया, जिसने राजनीतिक हलकों में गहरा विवाद मचा दिया है।
अखिलेश यादव ने कहा कि दिवाली पर मिट्टी के दीयों को जलाने की परंपरा तो त्रेता युग से चली आ रही है, लेकिन आज की दुनिया में हमें आधुनिकता और विकास की ओर बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा, “पूरी दुनिया में क्रिसमस के दौरान शहर महीनों तक जगमगाते रहते हैं, हमें उनसे सीखना चाहिए। हमें दीयों और मोमबत्तियों पर इतना पैसा क्यों खर्च करना पड़ता है? इनके लिए इतना इंतजाम क्यों करना पड़ता है?” उन्होंने वर्तमान सरकार की बिजली कटौती की नाकामी को भी निशाना बनाया और कहा कि अगर उनकी सरकार आएगी तो वे और भी खूबसूरत रोशनियां करने का वादा करेंगे।

इस बयान के साथ ही उन्होंने सरकार पर कटु टिप्पणी करते हुए कहा कि लखनऊ शहर में भारी ट्रैफिक जाम, कचरा और अन्य समस्याएं हैं, फिर भी इसे स्मार्ट सिटी कहा जा रहा है। अखिलेश यादव के इस तर्क ने दीपावली के पारंपरिक उल्लास और धार्मिक भावना के साथ-साथ मोहल्ले-गली तक में मनाए जाने वाले दीयों के त्योहार को सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से एक नए विवाद में बदल दिया है।
दूसरी तरफ, भाजपा और विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने इस बयान की तीखी आलोचना की है। भाजपा नेताओं ने अखिलेश यादव को निशाना बनाते हुए कहा कि उनका यह बयान हिंदुओं की भावनाओं का अपमान है और दिवाली जैसे धार्मिक त्योहारों को नीचा दिखाने की कोशिश है। VHP ने भी कहा कि दीयों और मोमबत्तियों पर खर्च करना पड़ता है क्योंकि इससे प्रजापति समुदाय के कुम्हारों व किसानों को रोजगार मिलता है, जो अखिलेश यादव ने नजरअंदाज किया है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अखिलेश यादव का बयान आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सांप्रदायिक और धार्मिक मुद्दों को लेकर राजनीतिक लड़ाई तेज करने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। इससे साफ है कि धार्मिक प्रतीकों और परंपराओं पर राजनीतिक आरोप- प्रत्यारोप का सिलसिला चुनाव तक जारी रहेगा।
अंत में, अखिलेश यादव की यह टिप्पणी केवल एक राजनीतिक बयान ही नहीं, बल्कि भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में बदलाव के यी संकेत भी दे रही है। परन्तु, इस पर मतभेद भी स्पष्ट रूप से दिख रहे हैं, जो कि सियासी दलों के बीच गरमागरम बहस को जन्म दे रहे हैं।
इस प्रकार, दीवाली को लेकर अखिलेश यादव की यह टिप्पणी भारतीय राजनीति में एक नया संकट उत्पन्न कर चुकी है, जिससे त्योहारों के धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व पर भी व्यापक चर्चा हो रही है।
