पूर्वी चम्पारण के चिरैया विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण एकदम बदल गए हैं। RJD के वरिष्ठ नेता और 2020 विधानसभा चुनाव के उम्मीदवार अच्छेलाल प्रसाद यादव ने इस बार टिकट न मिलने से नाराज़ होकर पार्टी के खिलाफ ही विद्रोह कर दिया है। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल कर अपने पुराने साथियों और समर्थकों को चौंका दिया है।

अच्छेलाल यादव लंबे समय से RJD से जुड़े रहे हैं। पार्टी के धरातली कार्यकर्ताओं में उनका प्रभाव रहा है और वे हमेशा से सामाजिक व विकासात्मक मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्षों की निष्ठा और समर्पण के बावजूद जब टिकट वितरण में उन्हें नजरअंदाज किया गया, तो उन्होंने “जनता की अदालत” में जाने का फैसला किया। उनके अनुसार, “अब जनता ही मेरा दल है, और सेवा ही मेरा चुनाव चिन्ह।”
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह कदम RJD के लिए एक झटका साबित हो सकता है। चिरैया क्षेत्र में यादव, कुशवाहा और महतो समुदायों का अच्छा-खासा लोकसमर्थन है, और अच्छेलाल यादव की पकड़ विशेष रूप से यादव समाज में मजबूत मानी जाती है। ऐसे में उनके निर्दलीय लड़ने से RJD उम्मीदवार का वोट बैंक प्रभावित होना तय है।
2020 के चुनाव में अच्छेलाल यादव ने RJD के टिकट पर लगभग 46 हजार वोट हासिल किए थे। भले वे हार गए थे, पर उन्होंने अपने संगठन और जनसंपर्क से क्षेत्र में गहरी पहचान बनाई थी। इस बार उनके समर्थक “अन्याय के खिलाफ सम्मान की लड़ाई” के नारे के साथ प्रचार में जुट गए हैं।
राजनीति विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार चुनाव 2025 में कई सीटों पर यही स्थिति देखने को मिल रही है, जहां टिकट वितरण में असंतोष खुलकर सामने आ रहा है। RJD, JDU और कांग्रेस, तीनों ही दलों में कई पुराने नेताओं ने या तो पार्टी छोड़ी है या निर्दलीय रास्ता अपनाया है। यह प्रवृत्ति महागठबंधन की एकता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रही है।
चिरैया क्षेत्र में अब मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। एक ओर सत्तारूढ़ NDA का उम्मीदवार, दूसरी ओर राजद समर्थित प्रत्याशी, और तीसरी ओर अच्छेलाल यादव की निर्दलीय चुनौती। स्थानीय समीकरणों के अनुसार, अगर यादव समुदाय का बड़ा हिस्सा उनके साथ खड़ा रहता है, तो वे “किंगमेकर” की भूमिका में भी आ सकते हैं।
अच्छेलाल यादव के इस निर्णय ने स्थानीय राजनीति में नई ऊर्जा और चर्चा को जन्म दिया है। समर्थक इसे “आत्मसम्मान की लड़ाई” कह रहे हैं, वहीं विपक्षी दल इसे राजद की अंदरूनी कमजोरी के रूप में देख रहे हैं। आने वाले दिनों में यह तय होगा कि जनता उनकी इस बगावत को कितना स्वीकार करती है।
एक बात तो तय है, चिरैया की इस लड़ाई ने बिहार की राजनीति में टिकट और वफादारी की नई बहस छेड़ दी है, जहां पुराने सिपाही अब खुद अपनी राह चुन रहे हैं और जनता के फैसले पर भरोसा जता रहे हैं।
