by: md atik
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को एक बड़ा झटका लगा है, जब पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व विधायक और पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. अनिल सहनी ने राजद से इस्तीफा दे दिया। डॉ. सहनी ने अपना इस्तीफा राजद के प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल को सौंपा है, जिससे पार्टी में हलचल मच गई है। राजद ने डॉ. अनिल सहनी को इस चुनाव में स्टार प्रचारक बनाया था, इसलिए उनका इस्तीफा पार्टी के लिए एक गंभीर क्षति माना जा रहा है।
डॉ. अनिल सहनी का राजद छोड़ने का निर्णय चुनावी वार्ता के दौरान सामने आया, जिसमें उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि राजद में अब योग्यता और जनाधार के बजाय परिवारवाद और चापलूसी को प्राथमिकता दी जा रही है। सहनी ने यह भी आरोप लगाया कि राजद लगातार अतिपिछड़ा वर्ग के नेताओं और कार्यकर्ताओं का अपमान कर रही है। उन्होंने कहा, “राजद जिस दिशा में बढ़ रही है, उसमें आम कार्यकर्ता और खासकर अतिपिछड़ा समाज के लिए अब कोई जगह नहीं बची है।” सहनी ने महागठबंधन के टिकट बंटवारे और संगठनात्मक निर्णयों में अतिपिछड़ों की उपेक्षा की बात उठाई, जिससे वे पार्टी में असंतुष्ट हो गए।

डॉ. अनिल सहनी की राजनीतिक यात्रा काफी लंबी और उतार-चढ़ाव भरी रही है। वे मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी सीट से पूर्व विधायक रह चुके हैं और 2012 से 2018 तक राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। हालांकि उनका राजनीतिक सफर सवालों से भी घिरा रहा है। अक्टूबर 2022 में एलटीसी (अवकाश तथा यात्रा भत्ता) घोटाले में दोषी ठहराए जाने के कारण उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी। इसके बावजूद, वे राजद के स्टार प्रचारक बनाए गए थे जो उनके राजनीतिक प्रभाव को दर्शाता है।
डॉ. अनिल सहनी का इस्तीफा राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ है। उन्होंने इस्तीफा देने के बाद भाजपा का दामन थामने का निर्णय लिया है। उन्होंने पहले जनता दल (यू) में भी काम किया था और जदयू से राज्यसभा सांसद बने थे। अब वे भाजपा में शामिल होकर बिहार चुनाव के समीकरणों को बदल सकते हैं। उनके भाजपा में शामिल होने से राजद को चुनावी माहौल में बड़ा झटका लगा है, खासकर उन परिस्थितियों में जब पार्टी महागठबंधन के साथ मुकाबला कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, अनिल सहनी के इस कदम से बिहार चुनाव 2025 में राजद की स्थिति कमजोर हो सकती है, क्योंकि वे अतिपिछड़ा वर्ग के बीच प्रभावशाली नेता माने जाते हैं। उनके इस्तीफे और भाजपा में शामिल होने से चुनावी रणनीतियों और मतदाताओं के रूझानों में असर पड़ने की संभावना है।
इस घटना ने बिहार की सियासी गरमाहट को और बढ़ा दिया है, और आने वाले दिनों में इसका असर पार्टी और चुनाव परिणाम पर कैसे पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी। डॉ. अनिल सहनी का यह फैसला महागठबंधन के लिए एक बड़ा नुकसान माना जा रहा है और भाजपा के लिए एक बड़ा राजनीतिक लाभ साबित हो सकता है।
