बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। हर दिन नई जोड़तोड़, गठबंधन में टूट और नेताओं के पाला बदलने की खबरें सुर्खियां बना रही हैं। इसी बीच एक बड़ा राजनीतिक उलटफेर देखने को मिला जब राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के पूर्व विधायक और स्टार प्रचारक डॉ. अनिल कुमार सहनी ने पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थाम लिया।
पटना स्थित बीजेपी कार्यालय में हुए इस कार्यक्रम में सहनी के साथ पूर्व कांग्रेस जिला अध्यक्ष बच्चू प्रसाद बिरू और आशा देवी भी बीजेपी में शामिल हुए। अनिल सहनी का यह कदम आरजेडी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, खासकर मुजफ्फरपुर जिले में, जहां उनका अच्छा जनाधार है।
तो आखिर कौन हैं अनिल सहनी और क्यों उन्होंने आखिरी वक्त पर पार्टी बदली? आइए उनके राजनीतिक सफर और विवादों पर एक नजर डालते हैं—
जेडीयू से शुरू हुआ था राजनीतिक सफर
अनिल कुमार सहनी का राजनीतिक करियर जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू से शुरू हुआ था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मल्लाह समुदाय से आने वाले अनिल सहनी को राज्यसभा भेजा था। वह 2010 और 2014 में दो बार राज्यसभा सदस्य रहे।
मल्लाह समुदाय बिहार की राजनीति में एक अहम जातीय समीकरण माना जाता है, जो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाता है। लेकिन 2018 में जब जेडीयू ने उन्हें तीसरी बार राज्यसभा का टिकट नहीं दिया, तो वे नाराज हो गए और 2019 में आरजेडी में शामिल हो गए।
2020 में कुढ़नी सीट से विधायक बने
2020 के विधानसभा चुनाव में अनिल सहनी ने कुढ़नी विधानसभा सीट से आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ा। उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार केदार प्रसाद गुप्ता को महज 712 वोटों के अंतर से हराकर जीत दर्ज की। यह जीत भले ही बहुत मामूली रही हो, लेकिन इसने यह साबित कर दिया कि अनिल सहनी की जड़ें इलाके में मजबूत हैं और मल्लाह समुदाय पर उनकी अच्छी पकड़ है।
भत्ता घोटाले में दोषी ठहराए गए, 2 साल की सजा
अनिल सहनी का राजनीतिक सफर विवादों से भरा रहा है। सितंबर 2022 में दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने उन्हें अवकाश एवं यात्रा भत्ता (Leave and Travel Allowance) घोटाले के मामले में दोषी ठहराया और दो साल की सजा सुनाई। सजा के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता भी चली गई।
सहनी ने इसका ठीकरा बीजेपी पर फोड़ा और कहा कि उन्हें साजिश के तहत झूठे केस में फंसाया गया। अब जबकि वे खुद चुनाव नहीं लड़ सकते, उन्होंने आरजेडी से अपने बेटे के लिए टिकट मांगा था। लेकिन तेजस्वी यादव ने उनकी मांग ठुकरा दी और कुढ़नी सीट से बाबू कुशवाहा को उम्मीदवार बना दिया। इससे नाराज होकर उन्होंने आरजेडी से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी का दामन थाम लिया।
विवादों से जुड़ा रहा नाम — नाले में फेंके थे 4 लाख रुपये
अनिल सहनी का नाम सबसे पहले सुर्खियों में 2005 के विधानसभा चुनाव के दौरान आया था। तब वे बोचहां विधानसभा क्षेत्र में जेडीयू प्रत्याशी के लिए प्रचार कर रहे थे। आरोप लगा कि वे मतदाताओं को पैसे बांट रहे थे। जब चुनाव आयोग की टीम ने उनकी गाड़ी को रोका, तो उन्होंने करीब 4 लाख रुपये नाले में फेंक दिए, जो बाद में अधिकारियों ने बरामद कर लिए।\
अब देखना यह होगा कि 2025 के चुनाव में उनकी यह नई पारी बीजेपी के लिए कितना फायदेमंद साबित होती है और क्या वे अपने पुराने विवादों की छाया से बाहर निकल पाते हैं या नहीं। फिलहाल इतना तय है कि बिहार की सियासत में अनिल सहनी का नाम एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है।
