भारतीय विज्ञापन उद्योग ने आज एक महान हस्ती को खो दिया है। 70 वर्ष की आयु में प्रतिष्ठित विज्ञापन विशेषज्ञ पीयूष पांडे का निधन हो गया। उनका जाना न सिर्फ एक व्यक्ति के अंत का संकेत है, बल्कि एक युग के समापन जैसा भी है जिसने भारतीय विज्ञापन को अंग्रेज़ी-प्रभुत्व वाले मॉडल से हटाकर आत्मीय, सांस्कृतिक और स्थानीय भावनाओं से जोड़ दिया।
उन्होंने ऐसे नारे गढ़े जो भारतीय जनमानस का हिस्सा बन गए जैसे “अब की बार, मोदी सरकार”, जिसने राजनीति में एक नया संचार युग शुरू किया, और “फेविकॉल का जोड़”, जो आज भी मजबूती और विश्वसनीयता का प्रतीक माना जाता है।

शुरुआती जीवन और करियर की शुरुआत
राजस्थान के जयपुर में जन्मे पांडे ने शिक्षा के बाद विज्ञापन क्षेत्र में प्रवेश किया। 1982 में उन्होंने ओगिल्वी इंडिया (Ogilvy & Mather India) से अपने करियर की शुरुआत की, एक प्रशिक्षु खाते के कार्याधिकारी के रूप में।
जल्द ही उन्होंने क्रिएटिव विभाग की ओर कदम बढ़ाया और अपने असाधारण दृष्टिकोण से भारतीय विज्ञापन की भाषा बदल दी। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि विज्ञापन सिर्फ उत्पाद-प्रचार न हो बल्कि भारतीय जीवन-शैली, भावनाओं और कहानियों से जुड़े हों।
पांडे ने विज्ञापन जगत में कई यादगार अभियान बनाए, जिन्हें आज भी लोग याद करते हैं। इनमें विशेष रूप से शामिल हैं:
- Fevicol के “जिस का जोड़ नहीं टूटे” और प्रसिद्ध अंडे वाला विज्ञापन।

- Cadbury के लिए “कुछ खास है जिंदगी में” अभियान जो भारतीय भावना से जुड़ा था।
- Asian Paints के “हर खुशी में रंग लाए” जैसे अभियान।
- राजनीतिक अभियान में भी उन्होंने योगदान दिया, जैसे “अब की बार, मोदी सरकार” नामक नारा-बाजी, जिसे उन्होंने तैयार किया था।
इन अभियानों की खास बात यह थी कि वे सिर्फ ब्रांड को बेचने नहीं बल्कि लोगों के दिल-दिमाग तक पहुँचने में कामयाब हुए। पांडे ने भाषा, भाव और कल्पना का ऐसा मेल किया कि विज्ञापन भारतीय घर-घर की पहचान बन गया।
उनके रचनात्मक योगदान को कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मान्यता मिली जैसे 2012 में क्लियो लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित , 2016 में ‘पद्मश्री’ से नवाजे गए, एक अद्वितीय उपलब्धि और 2018 में अपने भाई प्रसूण पांडे के साथ Cannes Lions में ‘Lion of St Mark’ पुरस्कार।
उनकी मृत्यु पर विज्ञापन, व्यापार और राजनीति के अनेक दिग्गजों ने शोक जताया है। उद्योग जगत ने उन्हें न केवल रचनात्मक गुरु बल्कि सहज-मानवीय व्यक्तित्व के रूप में याद किया, जिसने विज्ञापन को दिल से किया और कहानियों में बदला।
