25 अक्टूबर 2025, लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में प्रदेश के पंचायत एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर , जो कि अपनी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के अध्यक्ष भी हैं, ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवारों के खिलाफ मोर्च खोलने का ऐलान किया है।
उन्होंने यह फैसला उस समय लिया है जब उनकी पार्टी को बिहार में NDA की सीट-बाँट तालिका में एक भी उम्मीदवार देने का अवसर नहीं मिला। इस भूमिका परिवर्तन को राजनीतिक विशेषज्ञ ‘बैकफुट’ का संकेत मान रहे हैं।

क्यों नाराज़ हैं राजभर?
राजभर ने आरोप लगाया है कि बिहार में बीजेपी ने उनकी पार्टी की सक्रियता व संगठन को बौना कर दिया है। वे कहते हैं कि बिहार में राजभर, प्रजापति व राजवंशी समुदायों में उनकी पैठ है जो हर जिले में 20,000 से 80,000 वोट तक देती हैं लेकिन वोट बैंक के बावजूद उन्हें सीट नहीं दी गई।
उन्होंने यह भी कहा कि “जब हमें उप-चुनावों में चाहिए था, वे हाथ जोड़कर आये थे; अब उनकी बोली बदल गई है”।
बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय
SBSP ने घोषणा की है कि वह बिहार में लगभग 153 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। पहले चरण में 52 उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का इरादा जताया गया है। राजभर ने कहा है कि यदि NDA उन्हें 4-5 सीटें देने को तैयार हो जाए तो गठबंधन को जारी रखा जा सकता है, वरना “अपनी राह खुद चुनेंगे”। SBSP पूर्व में बिहार में किसी बड़ा प्रभाव नहीं रखती थी, क्योंकि यह दल मुख्य रूप से उत्तर-प्रदेश के पूर्वांचल में सक्रिय है। राजभर अब बिहार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की तैयारी कर रहे हैं उन्होंने कहा कि वे अन्य छोटी पार्टियों जैसे Janshakti Janata Dal से भी गठबंधन की संभावना तलाश रहे थे, लेकिन बाद में अकेले चलने का फैसला लिया।
विश्लेषकों का मानना है कि यदि SBSP बिहार में सक्रिय हो जाती है, तो यह OBC व अत्यल्प पिछड़ी जातियों के वोट बैंक में बदलाव ला सकती है, खासकर पूर्वी बिहार के उन जिलों में जहाँ राजभर-समुदाय की संख्या है।
क्या NDA को खतरा है?
NDA ने बिहार में अपनी सीट-बाँट पहले ही सार्वजनिक कर दी थी: भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल (यू) (JDU) को 101-101 सीटें मिली थीं, साथ ही अन्य सहयोगियों को तय हिस्से मिले थे। राजभर का कहना है कि यदि भाजपा-संघ और बिहार में सत्ता-संवाद में उन्हें उचित स्थान नहीं देती तो उनकी पार्टी NDA का साथ छोड़ सकती है, जिससे बिहार की चुनावी तस्वीर बदल सकती है।
