हवाई में चल रही United Nations Security Council की बैठक में पाकिस्तान पर तीव्र टिप्पणी करते हुए भारत ने कहा कि वहाँ “गंभीर और जारी मानवाधिकार उल्लंघन” हो रहे हैं। भारत ने अपने प्रतिनिधि पार्वथानेनी हरीश के माध्यम से पाकिस्तान से तत्काल इन उल्लंघनों को बंद करने का आह्वान किया.

उन्होंने कहा कि भारत-अधिगृहीत इलाके में पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे दमन को अब अनदेखा नहीं किया जा सकता, वहाँ मूलभूत अधिकार लगभग “अजनबी अवधारणा” बनकर रह गए हैं. भारत ने विशेष रूप से उस क्षेत्र का हवाला दिया जिसे वह ‘पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से अधिगृहीत’ कह रहा है, और वहाँ नागरिकों के अधिकारों की अनदेखी और अत्याचार की घटनाओं को उजागर किया.
विदेश मामलों में भारत का यह कदम एक बड़े राजनीतिक इशारे के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की छवि को बाधित करने और अपनी दावे को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है.
विश्लेषकों का मानना है कि यह संदेश केवल उस क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापक रूप से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों, नागरिक-स्वतंत्रता तथा राजनीतिक असंतुष्टि के संदर्भ में भी है.
पाकिस्तान से उठाए गए मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
– भारत का कहना है कि पाकिस्तान ने दावे के अनुसार ‘अवैध अधिग्रहण’ किये गए इलाके में नागरिकों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा नहीं की है।
– भारत ने आरोप लगाये कि वहाँ राजनीतिक असहयोग, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी और निष्पक्ष न्याय-प्रक्रिया का अभाव है।
– भारत ने यह तर्क दिया कि पाकिस्तान की सरकार इन चुनौतियों को स्वीकार कर भी सक्रिय रूप से नहीं सुधार रही है, जिसके परिणामस्वरूप मानवाधिकार संगठन लगातार चेतावनी देते आ रहे हैं।
इसके अतिरिक्त, पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका-प्राप्त मानवाधिकार रिपोर्टों में पाकिस्तान के हालात का जिक्र आता रहा है। उदाहरण के लिए, अमेरिका की एक रिपोर्ट में कहा गया कि पाकिस्तान ने “विश्वसनीय कदम” बहुत कम लिए हैं अधिकारियों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघनों की पहचान या दंड देने में.
यह पृष्ठभूमि भारत के कड़े रुख को समझने में अहम है।
भारत-पाकिस्तान के बीच इस तरह के मंच पर आरोप-प्रत्यारोप नए नहीं हैं, लेकिन इस बार भारत ने सीधे ‘मानवाधिकार उल्लंघन’ के शब्दों का इस्तेमाल किया है तथा इसके लिए पाकिस्तान की जिम्मेदारी तय की है।
यह ध्यान देने योग्य है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस तरह की आलोचना से पाकिस्तान पर राजनीतिक दबाव बढ़ेगा, और साथ ही भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा जो मानवाधिकार-मुद्दों को वैश्विक स्तर पर उठाता है।
हालाँकि, पाकिस्तान ने अभी तक इस विशेष आरोप-पत्र पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन ऐसे मंचों पर वह अक्सर उत्तर में भारत पर आतंक-समर्थन और सीमा-उल्लंघन के आरोप उठाता रहा है।
इस प्रकार, इस घटना ने क्षेत्रीय राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा है जहाँ समीक्षा और बयानबाजी अब सिर्फ युद्ध-शस्त्रों तक सीमित नहीं रही, बल्कि मानवाधिकार-विजिटरियलों तक विस्तारित हो गई है।
समग्र रूप से, इस बयान-आधारित कार्रवाई से यह संकेत मिलता है कि भारत अब अंतरराष्ट्रीय डिबेट-मंचों पर पाकिस्तान की नीतियों और व्यवहार के खिलाफ अधिक सक्रिय और सार्वजनिक रूप से मुखर हो रहा है।
पाकिस्तान के लिए इससे चुनौतियाँ बढ़ेंगी चाहे वह राजनीतिक, कूटनीतिक या मानवाधिकार-मापदंडों से जुड़ी हों।
भारत के इस कदम को उस दिशा में माना जा रहा है जहाँ वह केवल अपने-आप को रक्षा-परक ढांचे में नहीं देख रहा, बल्कि देश के नागरिकों और प्रभावित क्षेत्रों में जहाँ वह कहता है “अवैध अधिग्रहण” हुआ है, वहाँ मानवाधिकार-अभियानों के माध्यम से अपना दृष्टिकोण रख रहा है।
इस प्रकार, New York में हुई UNSC बैठक ने एक बार फिर दक्षिण एशिया के संघर्ष को सिर्फ भू-राजनीतिक नहीं बल्कि मानवाधिकार-आधारित दृष्टिकोण से सामने रखा है, जहाँ भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि उसने पाकिस्तान से सिर्फ बातचीत नहीं, बल्कि व्यवहार-परिवर्तन की उम्मीद रखी है।
