by: md atik
भारत की विविध सांस्कृतिक परंपराओं में छठ महापर्व का स्थान अद्वितीय है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि मानव और प्रकृति के बीच अटूट संबंध का संदेश भी देता है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाने वाला यह पर्व आज पूरे विश्व में भारतीयों की पहचान बन चुका है।
इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता इसकी शुद्धता और अनुशासन है। छठ महापर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से होती है और सप्तमी तक चलता है। पहले दिन नहाय-खाय से व्रत की शुरुआत होती है। व्रती स्नान करके शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन खरना मनाया जाता है, जिसमें शाम को गुड़ और चावल से बना प्रसाद तैयार किया जाता है और व्रती उसे ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास करती हैं।

तीसरे दिन संध्या को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। घाटों पर दीपों की श्रृंखला और लोकगीतों की मधुर ध्वनि से वातावरण भक्ति से भर जाता है। चौथे दिन प्रातःकालीन सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है। यह पूजा सूर्य देव को समर्पित है, जो जीवन और ऊर्जा के स्रोत माने जाते हैं।
छठ पूजा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाला लोकपर्व भी है। मिट्टी के पात्र, बाँस की टोकरी, नारियल, गन्ना और फल जैसी प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग इस बात का प्रतीक है कि मानव जीवन प्रकृति से गहराई से जुड़ा है।
इस पर्व का सबसे बड़ा आकर्षण सामाजिक समानता है। अमीर-गरीब, उच्च-नीच सभी घाट पर एक साथ खड़े होकर अर्घ्य देते हैं। यही छठ का सार है – सह-अस्तित्व, संयम और समर्पण की भावना।
छठ महापर्व हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति वही है जो अनुशासन, सादगी और कृतज्ञता में निहित हो।
